टी20 विश्वकप खत्म होने के बाद अब भारतीय टीम के अधिकतर खिलाड़ियों ने अपना पूरा ध्यान दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में खेले जा रहे चैंपियंस लीग टी-20 पर दे दिया है. मतलब कि आने वाले 20 दिन भारतीय टीम उस खेल के लिए मेहनत करेगी जिसका न तो एकदिवसीय मैच और न ही खेल के असली स्वरूप टेस्ट मैच से कोई लेना-देना है.
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बाजार के पीछे भागते खिलाड़ी
भारतीय टीम की व्यस्त सूची में जिस तरह से टी20 क्रिकेट को ज्यादा अहमियत दी जा रही है उससे तो खेल का असली स्वरूप टेस्ट क्रिकेट पूरी तरह से बर्बाद हो रहा है. खिलाड़ी बाजार के झुकाव को देखकर अपने मैच खेलते हैं. खिलाड़ियों के सामने आईपीएल और टी20 चैंपियंस लीग हों तो वहां दिलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी कोई मायने नहीं रखते. खिलाड़ी तो सोचते हैं कि अगर वह क्लब के लिए खेलेंगे तो वह ग्लैमर, मीडिया और बाजार में बने रहेंगे. उन्हे डर लगता है कि वह यदि वह घरेलू सीरीज (दिलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी) खेलेंगे तो उनकी छवि पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए देखा गया है कि घरेलू सीरीज वही खिलाड़ी खेलता है जिसकी राष्ट्रीय टीम में कोई जगह नहीं है या फिर वह जगह पाने के लिए जद्दोजहद में लगा हुआ है.
एक बार फिर हारेगा भारत
भारतीय खिलाड़ी जिस तरह से आईपीएल और चैंपियंस लीग टी-20 को तरजीह दे रहे हैं उसका बुरा असर आने वाले टेस्ट मैचों में देखने को मिलेगा. भारत के चोटी के सभी खिलाड़ी इस समय चैंपियंस लीग टी-20 में खेल रहे हैं. यह वही खिलाड़ी हैं जो आने वाले कुछ ही महीनों में इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के साथ घरेलू मैदान पर टेस्ट सीरीज खेलेंगे. इन सीरीजों को लेकर अगर भारतीय टीम की तैयारियों की बात की जाए तो इसका उदाहरण हाल में खत्म हुई टी20 विश्वकप से अच्छा हो ही नहीं सकता. विराट कोहली को छोड दें तो पूरी टीम संक्रमण के दौर से गुजर रही है. जो खिलाड़ी टी20 जैसे छोटे फॉरमेट में नहीं चल पा रहे वह इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट में क्या चलेगें. आपको याद दिला दें कि पिछले साल भी भारत इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया से टेस्ट मैच बुरी तरह से हार गया था. उस समय भी खिलाडियों ने भारतीय घरेलू सीरीज (दिलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी) को तरजीह न देकर चैंपियंस लीग टी-20 को तरजीह दी.
सचिन भी हो गए फीके
जिस तरह से राहुल द्रविड और वीवीएस लक्ष्मण ने युवाओं को मौका देने के तर्ज पर क्रिकेट से संन्यास ले लिया उसी तरह अब सचिन पर भी दबाव बन रहा है कि आखिरकार वह कब क्रिकेट को अलविदा कहेंगे. उन पर दबाव बनना लाजमी है क्योंकि 2011 विश्वकप के बाद अब तक सचिन का ऐसा कोई प्रदर्शन देखने को नहीं मिला जिससे यह कहा जा सके सचिन को संन्यास नहीं लेना चाहिए. वह एक शतक लगाने के लिए खुद तो महीनों इंतजार करते हैं अपने प्रशंसकों को भी एक शतक के लिए तरसा देते हैं. महाशतक लगने के बाद यह माने जाने लगा कि अब सचिन पर किसी चीज का कोई दबाव नहीं है और खुलकर अपने मैच खेलेंगे. लेकिन न्यूजीलैंड के साथ खेली गई घरेलू सीरीज ने यह साफ बयां कर दिया कि अब सचिन के शॉट में धार नहीं रही.
बीसीसीआई भी है दोषी
जैसा कि पहले भी माना जा चुका है कि बीसीसीआई खिलाड़ियों को पैसे कमाने की मशीन समझ चुकी है. वह खिलाड़ियों के लिए दिलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी की बजाए आईपीलएल और चैंपियंस लीग टी-20 के लिए उस तरह शेड्यूल बनाती है ताकि वह व्यस्त रहें. भारतीय खिलाड़ियों और बीसीसीआई को लगता है कि टी20 फॉर्मेट से पांच दिन के मैच अर्थात टेस्ट मैच को आसानी से जीता जा सकता है. जबकि सच्चाई यह है कि टी20 फॉर्मेट के बाजार के लिए बनाया गया है जबकि मैच जीतने के लिए उन्हें घरेलू सीरीज खेलनी ही पड़ेगी.
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