पिछले एक-दो वर्ष में यदि भारतीय क्रिकेट पर नजर दौडाएं तो पता चलता है कि भारत के धुरंधर 2011 क्रिकेट विश्वकप के बाद आसमान से धरती पर आए ही नहीं. वह आज भी विश्वकप की खुमारी में डूबे हुए हैं. उन्हे लगता है कि उनकी चैंम्पियन की गद्दी अभी भी बरकरार है. लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है. भारतीय टीम लगातार मैच दर मैच हार रही है. जहां पहले यह कहा जाता था कि भारतीय टीम भले ही विदेशों में अपनी नाक कटवा देती है लेकिन कम से कम अपने घर में तो जीत ही जाती थी. अब यह भी नहीं कह सकते क्योंकि विदेशी खिलाड़ी हमारे घर में आकर हमें ही मात दे रहे हैं. जिस तरह पिछले कई महीनों से भारत की शर्मनाक हार हो रही है उसके पीछे कई कारण हैं.
कहां गया ‘मद्रास टाइगर’ का वह पैनापन
महेंद्र सिंह धोनी का टीम में दबदबा: महेंद्र सिंह धोनी दुनिया के एकलौते कप्तान होंगे जो भारतीय टीम की उनकी कप्तानी में लगातार आठ हार के बाद भी अपने पद पर बने हुए हैं. वह कहने को तो टीम के कप्तान हैं लेकिन उनकी कप्तानी के जलवे दिखाई ही नहीं दे रहे. अकसर देखा गया है कि मैदान पर वही टीम अच्छा प्रदर्शन करती है जिसका कप्तान अपने खेल से अपने खिलाड़ियों के लिए आदर्श कायम करे लेकिन धोनी के पिछले रिकॉर्ड पर यदि नजर डालें तो आदर्श तो दूर वह अपने आप को एक बेहतर खिलाड़ी भी साबित नहीं कर पा रहे हैं. उनके हिसाब से पिच और टीम दी जा रही है लेकिन वह वहां भी असफल हो रहे हैं.
टीम स्पिरिट का अभाव: 2011 क्रिकेट विश्वकप के बाद ऐसा कम ही मौका आया जहां खिलाड़ियों के अंदर मैच को जीतने के लिए ललक हो. टीम स्पिरिट का अभाव इस कदर है कि अपने ही मैदान पर खिलाड़ी अपने विरोधियों के सामने लचर दिखाई दे रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे टीम गुटों में बंटी हुई हो जिसमें एक पक्ष धोनी का समर्थन कर रहा हो तो दूसरा पक्ष सहवाग का.
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टीम का ओवर कॉंफिडेंस: टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपने आगे किसी गेंदबाज और बल्लेबाज को कुछ भी नहीं समझते. इंग्लैड दौरे से पहले यह कहा जाता था कि भारत इंग्लैंड को हराकर क्लीन स्वीप करेगा और बदला चुकाएगा लेकिन नतीजा कुछ और निकला. भारतीय खिलाड़ी यह भूल गए थे इंग्लैंड कभी टेस्ट में कमजोर नहीं रहा. यही वजह है कि आज उनकी टीम विश्व में दूसरे नंबर पर है.
बीसीसीआई का ढुलमुल रवैया: बीसीसीआई खिलाड़ियों को खिलाड़ी नहीं बल्कि पैसे देने वाली मशीन समझती है. वह खिलाड़ियों के लिए कुछ इस तरह का कार्यक्रम तैयार करते हैं जिससे खिलाड़ी टी20 और आईपीएल में बंधकर रह जाते हैं. खराब प्रदर्शन के बावजूद खिलाड़ी लगातार बीसीसीआई की कृपा से टीम में बने रहते हैं.
नाम के हैं बड़े खिलाड़ी: जब भी टीम खतरे में होती है तो लोग उस खिलाड़ी की तरफ ज्यादा आंखें गड़ाकर देखते हैं जिसके पास ज्यादा अनुभव रहता है. लेकिन यहां तो वही खिलाड़ी ज्यादा असफल साबित हो रहे हैं जिनके पास ज्यादा अनुभव है. रन बनाने के नाम पर वह खिलाड़ी आगे आ रहे हैं जिनसे उम्मीद नहीं होती.
टी20 और आईपीएल: पिछले कुछ टेस्टों पर यदि नजर डालें तो भारतीय टीम पांच दिन की बजाय तीन दिन में ही अपने हथियार नीचे डाल दे रही है. टेस्ट मैच में जो संयम की जरूरत होती है वह संयम खिलाड़ियों के अंदर समाप्त हो चुकी है. कोई भी खिलाड़ी टिककर खेलने का नाम नहीं ले रहा. इसकी मुख्य वजह है खिलाड़ियों का बड़े फॉरमेट की बजाए छोटे फॉरमेंट की तरफ रुख करना.
कोच डंकन फ्लेचर बेअसर सबित होना : एक बात ध्यान देने योग्य है कि जब भारतीय टीम के कोच गैरी कर्सट्न थे तो टीम काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी.कर्सट्न ने कोच के रूप में टीम के हरेक भाग पर काम किया, यही वजह रही कि टीम ने उनके कोच के रूप में दूसरी बार विश्वकप अपने नाम किया. लेकिन जब से डंकन फ्लेचर कोच बने तो तब से ऐसा लगता कि उनका असर टीम के ऊपर नहीं है. वह टीम के लिए प्रभावहीन कोच साबित हो रहे हैं.
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