भारत में क्रिकेट की अपनी परंपरा और संस्कृति है. यहां लोग क्रिकेट को केवल खेल ही नहीं मानते बल्कि अपने आप को इससे जोड़कर देखते हैं. ऐसे में जब कोई खिलाड़ी अपने खेल के अनुकूल प्रदर्शन नहीं करता तो यहा क्रिकेट के चाहने वाले खासे नराज हो जाते हैं वही जब यही खिलाड़ी अपने रंग में होते है तो लोग उन्हे सिर-आंखों पर बिठा लेते हैं. उसके दुख को अपना दुख और उसके सुख को अपना सुख समझने लगते हैं.
कहां गया ‘मद्रास टाइगर’ का वह पैनापन
भारत के महान क्रिकेटर युवराज सिंह की बारे में जब लोगों यह मालूम हुआ कि उन्हे कैंसर है तो पहले तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि जो खिलाड़ी चंद रोज पहले अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी से हमे इंटरटेन कर रहा था उसे भला कैंसर कैसे हो सकता है. जब सच्चाई का पता चला तो लोगों ने अपने इस खिलाड़ी के लिए दुआएं मांगनी शुरू कर दी. यह लोगों की दुआएं का ही नतिजा है कि आज युवराज सिंह ने असंभव कार्य संभव कर दिखाया. कुछ महीने पहले यह कहा जाता था कि भारत का यह स्टाइलिश प्लेयर कभी टीम का हिस्सा नहीं बन पाएगा लेकिन युवराज सिंह न केवल टीम का हिस्सा बने बल्कि अपने बेहतर प्रदर्शन से सबको हैरान भी किया. दुनिया में ऐसे कम ही खिलाड़ी हैं जो युवराज की तरह कैंसर या दूसरे अन्य जानलेवा बिमारी को मात देकर वापस मैदान में कूदे हैं.
Life )
युवराज सिंह का जन्म 12 दिसम्बर, 1981 को पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था. वह पूर्व क्रिकेटर खिलाडी और फिल्म अभिनेता योगराज सिंह के बेटे हैं. 1976 में भारतीय टीम की ओर से महज एक टेस्ट मैच खेलने वाले योगराज सिंह ने अपने बेटे को क्रिकेट सिखाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था. चोट की वजह से और कुछ अन्य कारणों से योगराज सिंह को क्रिकेट छोड़ना पड़ा लेकिन उनके मन में एक टीस थी जिसे उन्होंने अपने बेटे को क्रिकेट की दुनिया का युवराज बनाकर निकाल ली. युवराज की मां का नाम शबनम सिंह है. युवराज उन्हें ही अपना आदर्श मानते हैं. कैंसर की लड़ाई के समय युवराज सिंह के पास अगर कोई था तो उनकी मां थी जो हर समय उनके हौसले को बढ़ाने का काम करती थी.
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युवराज सिंह का कॅरियर (Yuvraj Singh Career)
वह सन 2000 का दौर था जब भारत के बड़े खिलाड़ी मैंच फिक्सिंग के चलते टीम से बाहर कर दिए गए तब उस समय के भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली अपनी टीम को नए सिरे से तैयार करने के लिए युवराज सिंह जैसे खिलाड़ियों को अपने टीम में शामिल किया. युवराज सिंह भारत के हरफनमौला खिलाड़ी हैं. वह बल्लेबाजी के साथ गेंदबाजी की कमान भी संभालते हैं. वह कपिल देव के बाद भारत के दूसरे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने बल्लेबाजी के साथ-साथ गेंदबाजी में भी अपना जौहर दिखाया. कई मौकों पर उन्होंने भारत के लिए ऐसे विकेट भी लिए जहां पर भारत को इसकी दरकार थी. एक वक्त होता था जब भारत का क्षेत्ररक्षण काफी कमजोर माना जाता था लेकिन जब युवराज सिंह टीम में आए तो उनके क्षेत्ररक्षण को देखकर बाकी सभी खिलाड़ियों ने अपने क्षेत्ररक्षण के स्तर में काफी सुधार किया.
युवराज सिंह ने आईसीसी नॉक-आउट ट्राफी के दौरान केन्या के खिलाफ उन्होंने अपना पहला मैच खेला. इस सीरीज के दूसरे ही मैच में युवी ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ विस्फोटक रुख अपनाते हुए अपने बल्ले की धाक दिखा दी थी. इस मैच में उन्होंने 82 गेंदों पर 84 रन बनाए. जल्द ही युवराज सिंह भारतीय टीम के एक मैच विनर और फिनिसिंग प्लेयर के रुप में पहचान बनाने लगे. युवराज सिंह ने 2007 टी-ट्वेंटी विश्व कप में इग्लैण्ड के खिलाफ एक ओवर में छह छक्के जमाकर अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी का परिचय दिया था. अहम मौकों पर टीम का साथ देना युवी की बल्लेबाजी की खासियत रही है. भारत को दूसरी बार विश्वकप दिलाने में जिन खिलाड़ियों की अहम भूमिका थी उसमें युवराज सिंह का नाम पहले लिया जाता है. विश्व कप 2011 में युवराज ने 362 रन और 15 विकेट लेकर मैच ऑफ द टूनामेंट का खिताब अपने नाम किया.
बायं हाथ के इस विस्फोटक बल्लेबाज का मिजाज बेहद मजाकिया और मस्ती भरा है. वह चाहे मैदान पर हो या फिर मैदान के बाहर अपने चुलबुल अंदाज से सबको प्रभावित करने में कामयाब हो जाते हैं. उनकी बल्लेबाजी और गेंदबाजी के जलवे टी20 और एकदिवसीय मैचों में देखने को तो मिलती है लेकिन जब टेस्ट मैचों की बात आती है तो वह वहां फिसड्डी साबित हो रहे हैं. वह आज तक अपने आप को टेस्ट खिलाड़ी के रूप में अभी तक साबित नहीं करे पाए हैं.
यह रिकॉर्ड युवराज को एक ‘युवराज’ बनाते हैं
इंग्लैंड के खिलाफ़ टी-ट्वेंटी मैच के एक ओवर में छह छक्के.
विश्व कप 2011 में 362 रन और 15 विकेट लेकर मैच ऑफ द टूनामेंट.
274 वनडे मैचों में 8051 रन और 13 शतक.
आईपीएल में दो हैट्रिक.
अंडर 19 विश्व कप, टी-ट्वेंटी विश्व कप और 2011 विश्व कप विजेता टीम में शामिल.
टी-ट्वेंटी मैचों में सबसे तेज अर्धशतक (12 गेंदो मे 50 रन)
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