इंग्लैंड के साथ 28 सालों बाद अपनी ही जमीन पर सीरीज हारने के बाद अब भारतीय क्रिकेट टीम में हार के कारणों पर मंथन किया जा रहा है. जहां कुछ दिनों तक भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और टीम के सीनियर खिलाड़ियों पर हार का ठीकरा फोड़ा जा रहा है, वहीं अब इसमें राष्ट्रीय टीम के कोच डंकन फ्लेचर भी शामिल हो गए हैं. डंकन फ्लेचर अब तक बचते हुए दिखाई दे रहे थे. अब तक क्रिकेट को जानने वाले धोनी को कप्तानी से हटाए जाने की बात कर रहे थे और डंकन फ्लेचर के बारे में बहुत ही कम बोल रहे थे लेकिन अब बीसीसीआई के अधिकारी यह मानने लगे हैं कि बतौर कोच फ्लेचर ने हमें निराशा किया है.
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ऐसा नहीं है कि केवल बीसीसीआई के अधिकारी ही कोच डंकन फ्लेचर के प्रदर्शन से नाखुश हैं बल्कि भारतीय टीम के कई खिलाड़ी भी फ्लेचर को कोच के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. खिलाड़ी मानते हैं कि उन्हें फ्लेचर के काम करने के तरीके पसंद नहीं हैं. वैसे सच बात तो यही है विश्वकप 2011 के बाद जब से भारत के पूर्व कोच गैरी कर्स्टन ने भारतीय क्रिकेट टीम को डंकन फ्लेचर के हाथों सौपी थी तब से अगर देखा जाए तो भारतीय टीम की स्थिति और अधिक खराब हो गई. भारत को टेस्ट में अपने नंबर वन का ताज गंवाना पड़ा, भारतीय खिलाड़ियों से लेकर भारतीय टीम की रैंकिंग का स्तर नीचे गिरा, हर सीरीज में कोच-कप्तान की रणनीति फेल हुई.
खिलाड़ी के रूप में डंकन फ्लेचर जिम्बाव्वे की तरफ से खेल चुके हैं. अपने क्रिकेटिंग कॅरियर में उन्होंने जिम्बाव्वे क्रिकेट टीम की कमान भी संभाली है. वह जितने खिलाड़ी के रूप में मशहूर नहीं हुए उससे अधिक वह कोच के रूप में जाने जाते हैं. बतौर कोच इंग्लैंड की राष्ट्रीय टीम ने श्रीलंका, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों को हराया है. उनके कोच रहते हुए इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने लगातार आठ टेस्ट मैच जीते हैं जो कि एक बहुत ही बड़ा रिकॉर्ड है. एक और रिकॉर्ड जो कि उनके नाम वह है 18 साल बाद 2005 में आस्ट्रेलिया को एशेस सीरीज में 2-1 से हराना.
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लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही कोच हैं जिनके अंतर्गत भारतीय टीम को 2011-12 में लगातार आठ टेस्ट मैच हारने पड़े और 28 साल बाद इंग्लैंड टीम से सीरीज भी हारनी पड़ी. फ्लेचर की नियुक्ति अप्रैल 2011 में 2 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर हुई थी. उनके नाम की सिफारिश भारत में सफलतम कोच गैरी कर्स्टन ने की थी. जब फ्लेचर भारतीय टीम में शामिल हुए तभी पता चल गया था कि वह स्वभाव से दंभी हैं. उन्हें इस बात का गूरूर है कि वह उस इंग्लैंड टीम के कोच रह चुके हैं जिसने उनके रहते हुए कई कीर्तिमान रचे.
उनके कोच रहते हुए लगातार भारतीय टीम टेस्ट मैच में हार रही है इसके बावजूद भी फ्लेचर अपनी पुरानी गलतियों से सीख नहीं ले पा रहे हैं. उनका अब तक के विदेशी कोचों में सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. भारत में विदेशी कोच के लिए रास्ता सौरभ गांगुली की कप्तानी में खोला गया था. उस समय जॉन राइट भारत के पहले विदेशी कोच बने उसके बाद ग्रेग चैपल आए और जब भारतीय टीम अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर थी उस समय गैरी कर्स्टन टीम के कोच थे. फिलहाल साल में करोड़ों उठाने वाले फ्लेचर के कार्यकाल में अभी छः महीना बाकी है और अभी उनके सामने पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया जैसे बड़ी सीरीज हैं लेकिन जिस तरह से टीम में उनके खिलाफ आवाज उठ रही है उसे देखकर ऐसा नहीं लगता कि वह आगे टीम को जीत का स्वाद चखा पाएंगे.
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