आज भारतीय क्रिकेट टीम अपनी जमीन पर बिना संघर्ष किए पाकिस्तानी टीम के आगे घुटने टेक दे रही है. एक समय था जब यही टीम पाकिस्तान को एक जीत के लिए ‘नाको तले चने चबाने’ पर मजबूर कर देती थी. इस सुनहरे दौर की शुरुआत भारत के लिजेंड क्रिकेटर और टीम के पूर्व कप्तान कपिल ने की. कपिल देव का मानना है कि पाकिस्तान को हम ऐसे ही जीत भेंट नहीं करते थे. खेल के अंतिम बॉल तक हमारा संघर्ष जारी रहता था. इस महान खिलाड़ी ने आने वाले नए खिलाड़ियों को बताया कि किसी टीम से कैसे संघर्ष किया जाता है.
2011 विश्वकप के कारण आज हम जिस टीम और कप्तान के गुण गा रहे हैं कपिल देव और उनकी टीम ने इस तरह का कारनामा 1983 में ही कर दिया था. इस कारनामे के बाद न तो कपिल देव में और न ही उनकी टीम में किसी तरह का ओवर कॉंफिडेंस और क्रोध देखने को मिला जो आज के खिलाड़ियों में साफ दिखता है. कपिल देव का जन्म 6 जनवरी, 1959 को हरियाणा में हुआ था. एक साधारण से घर में जन्मे कपिल देव के सपने बहुत बड़े थे.
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कपिल देव का कॅरियर
कपिल देव ने सन 1975 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में प्रवेश किया. इस मैच में उन्होंने 6 विकेट लेकर सबको चौंका दिया. इसके बाद वह तेजी से भारतीय क्रिकेट में एक सितारे की तरह चमके. सिर्फ गेंदबाजी ही नहीं बल्कि बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण में भी वह बहुत बेहतरीन थे. अपने बेहतरीन खेल की बदौलत कपिल देव को 18 अक्टूबर, 1978 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच में खेलने का मौका मिला.
भारत की तरफ से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में 18 अक्टूबर, 1978 से अपने टेस्ट कॅरियर की शुरुआत की. इस मैच में कपिल ने अपने टेस्ट कॅरियर का पहला विकेट सादिक मोहम्मद के रूप में लिया. हालांकि तीन मैचों की सीरीज में कपिल देव सिर्फ सात विकेट ही ले सके. पर इसके बाद जो समय आया वह पूरी तरह कपिल देव का था. उन्होंने वर्ष 1979 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 22 विकेट लिए और इसके बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सीरीज़ में 32 विकेट लिए. सिर्फ़ 21 वर्ष और 27 दिन की आयु में कपिल देव 1000 रन और 100 टेस्ट विकेट लेने वाले दुनिया के सबसे युवा खिलाड़ी बने. उन्होंने 2000 रन और 200 विकेट का डबल भी सबसे कम उम्र में पूरा किया. अपने कॅरियर के आख़िर तक आते-आते कपिल देव सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बन गए थे. उन्होंने टेस्ट मैचों में 434 विकेट लिए हैं.
1983 का विश्व कप
यह कपिल देव की ही कप्तानी थी जिसने वेस्टइंडीज जैसे अजेय टीम को हराना सिखाया. जो काम आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमें नहीं कर पाईं वह कपिल देव और उनकी टीम ने कर दिया. 1983 के विश्वकप से पहले वेस्टइंडीज एकलौता विश्व विजेता था. उसके खिलाड़ियों के सामने किसी भी देश की टीम बौनी लगती थी लेकिन भारत के कप्तान कपिल देव ने इसी विश्वकप में उनके खिलाड़ियों का घमंड तोड़ा कि आज तक एकदिवसीय मैच में एक खिताब के लिए तरस रहे हैं. माना जाता है कि अगर कपिल देव इमरान खान, सर रिचर्ड हेडली और इयान बाथम के समय में नहीं खेले होते तो शायद आज विश्व के सबसे श्रेष्ठ ऑलरांउडर के रूप में जाने जाते.
कपिल जब तक क्रिकेट खेलते रहे, तब तक उन्होंने भारतीय टीम को अपना पूरा योगदान दिया, लेकिन संन्यास लेने के बाद भी वे भारतीय क्रिकेट के लिए कार्य करते रहे. उन्होंने 1999 में भारतीय टीम के कोच का पद संभाला और सन् 2000 तक टीम से जुड़े रहे. आज भी भारत का जब भी मैच होता है तो कपिल देव किसी चैनेल पर विचार रखते जरूर हैं. भारत के इस पूर्व भारतीय कप्तान ने हाल ही में हिन्दी कमेंटेटर के रूप में नयी पारी शुरू की.
कपिल ने बीसीसीआई से अलग इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) की स्थापना भी की, जिसमें उन्होंने उन खिलाड़ियों को खेलने का मौका दिया जो अपने देश की अंतरराष्ट्रीय टीम में ज्यादा समय तक नहीं खेल पाए. इस लीग को बागी क्रिकेट लीग का नाम भी दिया गया लेकिन इसने क्रिकेट के एक और संस्करण टी-20 को दुनिया के सामने एक नए रूप में प्रस्तुत किया, जिसका बहुत कुछ श्रेय कपिल को जाता है.
कपिल देव को अगर आप सौरव गांगुली के साथ देखें तो दोनों में काफी समानता नजर आएगी. कभी ना झुकने का विश्वास, अपनी जीत के लिए लड़ जाना और अपने साथियों का साथ देना कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो कपिल देव को एक महान खिलाड़ी बनाती हैं. कपिल देव उन महान खिलाड़ियों में से हैं जो अपने बनाए हुए उसूलों पर चलते है. वह आज भी बिना किसी खेल संगठन के दबाव में खुल कर अपने विचार रखते हैं.
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