असली खिलाड़ी वही है जो तमाम तरह के विवादों और आलोचनाओं के बावजूद भी आगे बढ़े और अपने खेल पर ज्यादा से ज्यादा फोकस कर सके. इस नीति के साथ कुछ खिलाड़ी ही चल पाते हैं जबकि बाकी बचे खिलाड़ी विवादों के जाल में फंसकर रह जाते हैं. पारस पत्थर के नाम से मशहूर भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के क्रिकेटिंग कॅरियर को अगर देखें तो जितना उन्होंने क्रिकेट में नाम कमाया उससे कहीं ज्यादा उन्होंने आलोचनाएं भी झेली हैं लेकिन हर आलोचना के बाद वह दमदार रूप से सबके सामने आए हैं.
बतौर खिलाड़ी धोनी ने क्रिकेट के जरिए जैसे-जैसे सफलता प्राप्त की वह खेल के ब्रांड होने के साथ-साथ बाजार के भी ब्रांड होते चले गए. कारोबारियों पर इनका जादू इस कदर चढ़ा हुआ है कि कुछ विज्ञापन को छोड़ दें तो बाकी सभी विज्ञापनों में धोनी ही धोनी नजर आते हैं. आज ऐसा समय आ चुका है कि वह न केवल भारत में बल्कि दुनिया में 20 सबसे अमीर खिलाड़ियों में शुमार हो चुके हैं.
लेकिन धोनी की यही कामयाबी कई बार उनकी आलोचनाओं का कारण बनी. जब कभी भी धोनी या फिर भारतीय क्रिकेट का स्तर नीचे गिरने लगता तब वहां धोनी और उनके द्वारा बनाए गए बाजार की चर्चा गरम होने लगती. उस समय धोनी पर आरोप लगने लगते कि वे खेल पर कम नोट छापने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. लेकिन तमाम तरह की आलोचना सहने के बाद भी धोनी बीच-बीच में नायक के रूप में सामने आते दिखे.
वैसे कप्तान धोनी के खिलाफ आवाज उस समय ज्यादा उठी जब 2011 के विश्वकप के बाद उनकी कप्तानी में खामियां दिखने लगीं. वह लोगों को कूल कप्तान की बजाए एक बोझिल कप्तान लगने लगे. 2012 में विदेशी दौरे पर टीम इंडिया के खराब प्रदर्शन के बाद हर जगह से यह मांग उठने लगी कि उनको टेस्ट कप्तानी से बाहर किया जाए और गौतम गंभीर को टेस्ट कप्तान बनाया जाए. धोनी को कप्तानी से नहीं हटाया गया लेकिन हां, गौतम गंभीर खुद टीम से बाहर हो गए.
धोनी पर अकसर आरोप यह भी लगते हैं कि वह टी20 और आईपीएल के खिलाड़ी हैं. जिस मन से वह आईपीएल के मालिकों के लिए खेलते हैं उस मन से वह भारतीय टीम के लिए नहीं खेलते. लेकिन हाल ही में खत्म हुए चैंपियंस ट्रॉफी 2013 में उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया और खिताब पर कब्जा किया. उसके बाद से उन पर कोई आवाज भी नहीं उठा रहा है.
धोनी तमाम तरह की आलोचना सहने के बावजूद भी भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान हैं. आंकड़े बताते हैं कि धोनी टेस्ट मैचों में भी, वनडे में भी और टी-20 में भी देश के सफलतम क्रिकेट कप्तान हैं. उन्होंने जिन 47 टेस्ट मैचों में कप्तानी की है उनमें से 24 में जीत हासिल की है, जबकि सौरव गांगुली 49 टेस्ट मैचों में कप्तानी करने के बाद 21 जीत पाए. वहीं अजहर ने तो 47 टेस्टों की कप्तानी के बाद सिर्फ 14 टेस्ट जीते.
एकदिवसीय में भी धोनी की कामयाबी का प्रतिशत इन दोनों कप्तानों से काफी बेहतर है. अजहरुद्दीन ने 174 मैचों में 90 में जीत हासिल की, यह सफलता 54 फीसदी से कुछ ऊपर बैठती है, जबकि सौरव गांगुली 147 मैचों में 76 मैच जीतने में सफल रहे और उनका प्रतिशत 55 के पार जाता है जबकि महेंद्र सिंह धोनी 140 मैचों में 82 जीत चुके हैं और यह कामयाबी 58 फीसदी से ऊपर की है.
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