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क्रिकेट के दो दोस्त असल जिंदगी में अलग कैसे हुए

एक समय था जब क्रिकेट कोच रमाकांत आचरेकर के दो होनहार शिष्य एक-दूसरे के बहुत ही बड़े जिगरी दोस्त हुआ करते थे. दोनों की दोस्ती की मिसाल यदा-कदा अखबारों में पढ़ने को मिल जाती थी. दोनों ने ही अपने कॅरियर की शुरुआत एक साथ एक ही कोच (रमाकांत आचरेकर) की क्षत्रछाया में रहकर की. दोनों में ही महान बनने की क्षमता थी लेकिन बाद में ऐसा क्या हुआ कि दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए. उनमें से एक तो महान बन गया लेकिन दूसरा अपनी पहचान के लिए लड़ रहा है. बात हो रही अपने समय के बल्लेबाज विनोद कांबली और महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की.


sachin tendulkar and vinod kambliगौरतलब है कि कांबली और सचिन की दोस्ती उस उम्र से है जब दोनों 10 साल के थे और मुंबई के शारदाश्रम स्कूल में कक्षा सात के छात्र थे. दोनों की पहली मुलाकात रमाकांत आचरेकर की क्रिकेट कोचिंग में हुई थी. यहीं पर कोच रमाकांत आचरेकर ने दोनों को क्रिकेट की हर बारीकियों को बताया. उन्होंने बचपन से ही दोनों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया. उधर सचिन और कांबली भी एक समर्पित शिष्य की तरह कोच की हर सीख को बड़े ही संजीदगी से लेते थे.


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यही वजह रही कि वर्ष 1988 में दोनों ने शारदाश्रम विद्यामंदिर स्कूल के लिए हैरिश शील्ड प्रतियोगिता में सेंट जेवियर स्कूल के खिलाफ साथ खेलते हुए रिकॉर्ड 664 रनों की साझीदारी की थी. दोनों के इस साझा प्रदर्शन की आज भी मिसाल दी जाती है.


अपने इस प्रदर्शन की बदौलत सचिनऔर कांबली को छोटी सी उम्र में ही राष्ट्रीय टीम में जगह मिल गई जहां दोनों की शुरुआत काफी अच्छी रही. दोनों ने ही टेस्ट क्रिकेट में 1000 रन बहुत ही जल्दी बना लिए थे. 1989 में क्रिकेटिंग कॅरियर की शुरुआत करने वाले सचिन 1992 में ही टेस्ट क्रिकेट में 1000 रन बनाकर सबसे युवा क्रिकेटर बन गए थे. तो उधर कांबली ने भी 14 टेस्ट मैच में हजार रन बनाकर नया कीर्तिमान रचा.


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90 का दशक दोनों की सफलता के लिहाज से काफी बेमिसाल रहा लेकिन 21वीं शताब्दी के शुरुआती सालों तक सचिन तो अपनी जगह पर रहे लेकिन कांबली अपने लक्ष्य से भटक चुके थे. किसी भी खेल के लिए पहली शिक्षा लगन, अनुशासन और आत्मसंयम होती है लेकिन विनोद कांबली में इसकी कमी दिखाई देने लगी. कांबली पर क्रिकेट की शोहरत का ऐसा जादू चला जिसे वह संभाल नहीं पाए और यही वजह रही वह सचिन के आधे मुकाम पर भी नहीं पहुंच पाए.


एक तरह सचिन सफलता की लगातार ऊंचाइयां छूते जा रहे थे तो दूसरी तरफ कांबली पतन के गर्त में जाते हुए दिखाई दे रहे थे. एक समय ऐसा आया जब सचिन की सफलता कांबली को खटकने लगी. इसका अंदाजा तब लगा जब एक टीवी रियलिटी शो में कांबली ने कहा कि उन्हें लगता है कि सचिन ने कॅरियर में उनकी बहुत ज्यादा मदद नहीं की. हालांकि बाद में कांबली ने इसे लेकर काफी सफाई भी दी. कांबली की यह बात सचिन को पसंद नहीं आई. तब से लेकर आज तक सचिन कांबली को नजरअंदाज करते आ रहे हैं.


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