क्रिकेट केवल गेंद और बल्ले का खेल नहीं है. यह खेल गेंद और बल्ले से संघर्ष करने वाले खिलाड़ियों की शारीरिक और मानसिक मजबूती का भी खेल है. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेटर भी हाड़ मांस के बने होते हैं और इनका शरीर भी चोट, बीमारी और विकलांगता का शिकार होता है.
यह उन दस खिलाड़ियों की कहानियां हैं जो अपने मानसिक मजबूती के बूते अपनी शारीरिक अक्षमता को मात दे पाए और उसे अपने खेल में बाधक नहीं बनने दिया. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के ये ऐसे हीरो हैं जो दुनियाभर की कई पीढ़ियों को सालों-साल प्रेरित करते रहेंगे.
1. युवराज सिंह कैंसर
2011 क्रिकेट विश्व कप भारत ने जीता और इस जीत के सबसे बड़े हीरो रहे ऑलराउंडर युवराज सिंह. विश्व कप के प्लेयर ऑफ दी टूर्नामेंट को इस सीरीज के खत्म होते ही जिंदगी का सबसे बड़ा झटका लगा, जब उन्हें पता लगा कि वे कैंसर से पीड़ित हैं. अपनी ऑटोबायोग्राफी में युवराज लिखते हैं, “उस दिन मैं बच्चों की तरह रोया. मैं एक समान्य जिंदगी जीना चाहता था जो अब मुझसे छिन चुकी थी.” हालांकि अमेरिका में कीमोथेरपी से गुजरने के बाद युवराज ने अंंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में फिर वापसी की और साबित कर दिया कि वे एक फाईटर हैं.
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2. मंसूर अली खान पटौदी- एक आंख से दृष्टिहीन
इन्हें हम भारतीय टीम के उस कप्तान के रूप में जानते हैं जिसने टीम में आक्रमकता भर दी. इस आक्रमक कप्तान की एक आंख की रौशनी एक कार दुर्घटना के बाद चली गई थी. यह घटना उन्हें भारत का कप्तान चुने जाने के कुछ महीने पहले ही घटी. इस तरह नवाब पटौदी ने अपने कॅरियर के अधिकांश हिस्से में एक आंख से ही खेला.
3. मार्टिन गुप्तिल- पांव में सिर्फ दो उंगलियां हैं
न्यूजीलैंड के धाकड़ बल्लेबाज ने 2015 के विश्वकप के क्वार्टरफाईनल में डबल सेंचुरी मारकर फिर एक बार साबित किया है कि वे किस स्तर के खिलाड़ी हैं. इस बल्लेबाज की 14 साल की उम्र में एक दुर्घटना के बाद बाएं पांव की तीन उंगलियां काटनी पड़ी थी. उनके बांए पांंव में सिर्फ 2 उंगलियां ही हैं.
4. रेयान हैरिस- फ्लोटिंग बोन
2013 में हुए एशेज सीरीज के दौरान ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज रेयान हैरिस फ्लोटिंग बोन की समस्या से गुजर रहे थे. इसके कारण उनके दाहिने घूटने के कार्टिलेज बूरी तरह घिस चुके थे. डॉक्टरों की सलाह थी कि वे सीरीज में खेलने की बजाए अपनी सर्जरी कराएं पर इस तेज गेंदबाज ने दर्द से जुझते हुए भी सीरीज में खेलना जारी रखा. पूरी सीरीज में रेयान ने 22 विकेट लिए जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.
5. वसीम अकरम- मधुमेह
पाकिस्तान का यह स्विंग बॉलर जब अपने कॅरियर की बुलंदियों पर था तब उसे पता चला कि वह मधुमेह से गुजर रहा है. उस वक्त वसीम अकरम कि उम्र 31 वर्ष थी. वसीम अकरम के कॅरियर में मधुमेह कोई रुकावट नहीं डाल सकी और 2009 में जब उन्होंने खेल से सन्यास लिया तो उनके खाते में अतिरिक्त 250 विकेट जुड़ चुके थे. यह विकेट वसीम अकरम ने मधुमेह की बीमारी से लड़ते हुए हासिल किए.
6. शोयब अख्तर- हाईपर एक्सटेंडेड एलबो
पाकिस्तान का यह तेज गेंदबाज बल्लेबाजों के लिए खौफ का दूसरा नाम हुआ करता था. कम ही लोग जानते हैं कि क्रिकेट पिच पर 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद डालने वाले शोयब अख्तर के शरीर में एक ऐसी विकृति थी जो कि मेडिकल जगत के लिए एक सनसनी बनी रही.
शोयब अख्तर की कुहनी विपरीत दिशा में 40 डिग्री तक मुड़ जाती है जबकि साधारण मनुष्य की कुहनी अधिकतम 20 डिग्री तक ही मुड़ पाती है. कई लोगों का मानना था कि शोयब को इस विकृति के कारण अतिरिक्त लाभ मिलता था. खैर एक सच्चाई यह है कि इस विकृति के कारण शोयब का कॅरियर चोटों से जुझते हुए गुजरा. उन्हें अपने जोड़ों में जमा पानी को निकालने के लिए बार-बार इंजेक्शन लेना पड़ता था.
7. माइकलएथर्टन– एन्किलॉसिंग स्पॉन्डलाईटिस
इंग्लैंड के इस कप्तान को अपनी इस बीमारी का तब पता चला जब वह उम्र के दूसरे दशक में थे. इस बीमारी में शरीर की प्रतिरोधक तंत्र अपने ही शरीर का दुश्मन बन जाता है. इस बीमारी में रोगी की मांसपेशियों और पीठ के तेज दर्द होता है. पर यह बीमारी इंगलैंड के इस खिलाड़ी के कॅरियर पर असर नहीं डाल पाई. इंग्लैंड के इस बल्लेबाज ने एन्किलॉसिंग स्पॉन्डलाईटिसनामक बीमारी से जुझते हुए भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक लंबी पारी खेली.
8. ब्रेन लारा- हेपेटाईटिस बी
हेपेटाईटिस बी से पीड़ित है. कुछ विशेषज्ञों का यह मानना है कि रक्त से जुड़ी यह बीमारी एड्स से ज्यादा खतरनाक है. हालांकि एड्स के विपरित इस बीमारी का इलाज संभव है.
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जब ब्रेन लारा इस बीमारी के शिकार हुए तो यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में फिर वापसी कर पाएंगे. लेकिन सभी अटकलों को धता बताते हुए लारा ने न सिर्फ वापसी की बल्कि टेस्ट मैच में नाबाद 400 रन भी मारे जो कि आज भी एक रिकॉर्ड है.
9. बी एस चंद्रशेखर- पोलियो
भारत का यह स्पिन गेंदबाज तीन साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो गया था. चंद्रशेखर ने पोलियो ग्रसित अपने दाहिने हाथ को अपने लिए वरदान में बदल लिया. हाथ के पतले होने के कारण उन्हें अतिरिक्त लचक प्राप्त होती थी जिसने उन्हें एक घातक स्पिनर बना दिया. वे मध्यम तेज गति की गेंद डालकर भी उसे स्पिन करा पाते थे.
चंद्रशेखर की यह खूबी भारत के कितने काम आई इसक उनके रिकॉर्ड से पता चलता है. भारत के 14 टेस्ट जीतों में उन्होंने 98 विकेट हासिल किए और इस दौरान उनका बॉलिंग एवरेज 19.27 का रहा.
माईकल क्लार्क- डेसिमेटेड इंटरवरटेब्रल डिस्क
इस बीमारी के कारण ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को अधिकांश समय पीठ दर्द की समस्या झेलनी पड़ती है. लेकिन इसका असर उनके खेल पर शायद ही दिखता है. दुनिया इस ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी को एक स्टाईलिश बल्लेबाज और बेहतरीन फिल्डर के रूप में जानती है. मानसिक मजबूती क्या होती है यह कोई क्लार्क से सीखे. Next…
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