विश्वकप में देश का प्रतिनिधित्व करना किसी भी क्रिकेटर का सपना होता है. भालाजी डामोर भी विश्वकप में भारत की ओर से खेलना चाहते थे. 1998 के विश्वकप में इस ऑलराउंडर ने न सिर्फ देश की तरफ से खेला बल्कि इस टुर्नामेंट के हीरो भी रहे. बेशक वह विश्व कप दृष्टिबाधित खिलाड़ियों का था लेकिन इस खिलाड़ी की बदौलत भारत सेमी-फाइनल में पहुंच सका था. किसान परिवार से आने वाले इस अंधे क्रिकेटर को उम्मीद थी की विश्वकप के बाद उनकी जिंदगी बेहतर हो जाएगी लेकिन आज 17 साल बाद यह प्रतिभावान खिलाड़ी भैंस चराने और छोटे-मोटे खेती के काम करने को मजबूर है.
गुजरात से ताल्लुक रखने वाले इस क्रिकेटर के नाम आज भी भारत की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड है. 38 वर्षीय इस क्रिकेटर का रिकॉर्ड बेहद शानदार है. 125 मैचो में इस ऑलराउंडर ने 3,125 रन और 150 विकेट लिए हैं. पूरी तरह से दृष्टिबाधित इस क्रिकेटर ने भारत की तरफ से 8 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं.
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“विश्वकप के बाद मुझे उम्मीद थी कि मुझे कहीं नौकरी मिल जाएगी. लेकिन मुझे कहीं नौकरी नहीं मिल पायी. स्पोर्ट कोटा और विकलांग कोटा मेरे किसी काम नहीं आ सके.” भालाजी बेहद भारी मन से कहते हैं. कई सालों बाद गुजारत सरकार ने उनका प्रशंसात्मक उल्लेख जरूर किया लेकिन उन्हें अबतक एक अदद नौकरी की दरकार है.
अरावली जिले के पिपराणा गांव में भालाजी और उनके भाई की एक एकड़ जमीन है लेकिन इतनी सी जमीन पर हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी उनका परिवार महीने के केवल 3000 रुपए कमा पाता है. भालाजी की पत्नी अनु भी खेत में काम करती हैं. उनका पूरा परिवार एक कमरे के घर में रह रहा है जहां जगह-जगह इस स्टार क्रिकेट के कॅरियर में मिले पुरस्कार और सर्टिफिकेट बिखरे पड़े हैं.
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नेशनल एशोसिएशन ऑफ ब्लाइंड के वाइस प्रेसिडेंट भास्कर मेहता कहते हैं कि भारतीय अंध टीम को भालाजी जैसा प्रतिभावान खिलाड़ी फिर नहीं मिला, “विश्वकप के दौरान उसके साथी खिलाड़ी उसे सचिन तेंदुलकर कहकर बुलाते थे.”
जहां एक तरफ रेगुलर क्रिकेटर्स को जिंदगी में खूब सारी दौलत-सोहरत मिलती है वहीं भालाजी जैसे क्रिकेटर अपनी तमाम प्रतिभा के बावजूद अपने कॅरियर और कॅरियर समाप्त होने के बाद एक सम्मानजनक जिंदगी की व्यवस्था करने के लिए जद्दोजहद करने को मजबूर हैं. Next…
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