आशीष नेहरा 1 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लेंगे। न्यूजीलैंड के खिलाफ दिल्ली में होने वाला टी20 मैच, उनका आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच होगा। नेहरा के 18 साल के क्रिकेट कॅरियर में काफी उतार-चढ़ाव आए। उन्होंने मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में कॅरियर शुरू किया और अब विराट कोहली के नेतृत्व में खेलकर क्रिकेट को अलविदा कहेंगे। अजहर से लेकर गांगुली, द्रविड़, अनिल कुंबले, धोनी और अब कोहली, यानी छह कप्तानों की अगुवाई में उन्होंने क्रिकेट खेला। इन 18 वर्षों में वे अक्सर चोटिल होते रहे। उनकी 12 मेजर सर्जरी हो चुकी हैं, लेकिन नेहरा सर्वाइवर हैं। इन दिक्कतों को उन्होंने क्रिकेट के जुनून के आगे छोटा बना दिया। आइये नजर डालें आशीष नेहरा के क्रिकेट कॅरियर पर।
अजहर की कप्तानी में डेब्यू
1999 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में नेहरा का कॅरियर शुरू हुआ। एशियाई टेस्ट चैंपियनशिप में श्रीलंका के खिलाफ उन्होंने अपना डेब्यू मैच खेला। इसके बाद वो 2 साल के लिए गायब हो गए, फिर सौरव गांगुली उन्हें वापस लेकर आए। यह उस सुनहरे दौर की शुरुआत थी, जब जवागल श्रीनाथ ने नेहरा और बाएं हाथ के एक और यंग गेंदबाज जहीर खान के साथ मिलकर भारत की ओर से अब तक की सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजी दिखाई। नेहरा और जहीर बल्लेबाजों को परेशान करते थे, जब श्रीनाथ अपना तजुर्बा दिखाते थे। 2003 का विश्वकप नेहरा के लिए ऊंचाई छूने वाला मौका था, जब उन्होंने डर्बन के मैच में इंग्लैंड की बल्लेबाजी को बिखेर दिया था।
बार-बार चोट और ऑपरेशन
जवागल श्रीनाथ के संन्यास लेने के बाद नेहरा ने गेंदबजी की बागडोर संभाली, लेकिन इस दौरान उनकी एड़ी, घुटना समेत शरीर के कई हिस्सों का ऑपरेशन होता रहा। बार-बार चोट लगने के बाद नेहरा का पूरा ध्यान वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट पर चला गया। टेस्ट क्रिकेट की कड़ी मेहनत नेहरा को नहीं पसंद आ रही थी। यह तब दिखा भी, जब उन्होंने 2004 में पाकिस्तान के दौरे पर भारत के लिए अपना आखिरी टेस्ट खेला। नेहरा के कॅरियर का दूसरा दौर तब तक चला, जब तक गांगुली भारत के कप्तान रहे, यानी सितंबर 2005 तक। उस समय भारतीय टीम के कोच ग्रेग चैपल के निशाने पर रहने वाले खिलाड़ियों में नेहरा भी एक थे। अगले चार साल तक नेहरा भारतीय क्रिकेट टीम में नहीं दिखे।
वर्ल्ड कप फाइनल से हुए बाहर
गांगुली के जाने के बाद वो दौर शुरू हुआ, जब लगातार टीम के कप्तान बदल रहे थे। उस दौरान संभावित गेंदबाजों में भी नेहरा का नाम शामिल नहीं किया जाता था। अब तक टीम में आरपी सिंह, श्रीसंत, मुनाफ पटेल जैसे यंग गेंदबाज आ चुके थे। हालांकि, ये गेंदबाज अपने आपको टीम में पूरी तरह स्थापित नहीं कर पाए थे। इसके बाद कप्तानी आई एमएस धोनी के पास। इसी समय धोनी ने चयनकर्ताओं को छोटे फॉर्मेट के लिए नेहरा को टीम में चुनने के लिए राजी कर लिया। इस दौर में उन्होंने जून 2009 से मार्च 2011 तक 48 वनडे मैच खेले। नेहरा ने 32.64 के औसत से 65 विकेट लिए। यह वो समय था, जब नेहरा सफेद गेंद से गेंदबाजी करने वाले सर्वश्रेष्ठ बॉलर थे। उन्होंने 2011 के विश्व कप सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। मगर वो चोटिल हो गए और फाइनल से बाहर रहे। नेहरा ने भारत के लिए उस वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के बाद कोई वनडे नहीं खेला।
धोनी लेकर आए वापस
वर्ल्ड कप के आयोजन के समय धोनी उन्हें वापस लेकर आए। नेहरा ने मौके का फायदा उठाया और जिस तरीके से गेंदबाजी हमले की अगुवाई की, वो काबिले तारीफ रही। मगर वर्ल्ड कप टी20 में नतीजे भारत की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। ऐसा महसूस किया गया कि एक बार फिर नेहरा अलग-थलग हो जाएंगे और वो फिर चोटिल हो गए। बार-बार चोट लगने के बावजूद किस्मत से नेहरा वापसी करते रहे। अब 1 नवंबर को अपने घरेलू मैदान पर खेलने के बाद वो संन्यास ले लेंगे।
Read More:
मिताली राज ने की कोहली की ‘बराबरी’, ऑस्ट्रेलिया की खिलाड़ी को छोड़ा पीछेT20, वनडे और टेस्ट में इन सितारों ने ठोका है सबसे तेज शतकइन 6 बल्लेबाजों ने बिना छक्का मारे वनडे में खेली 150 रनों की पारी, लिस्ट में दो भारतीय खिलाड़ी
Read Comments